काल्पनिक कथा, गोत्र की महिमा एवं गोपाल मन्त्र

GeneralComments Off on काल्पनिक कथा, गोत्र की महिमा एवं गोपाल मन्त्र

प्रश्न: वर्तमान समय में, अन्य सांस्कृतिक साहित्य को सामान्य एवं बौद्धिक जनता द्वारा काल्पनिक कथाओं के रूप में समझा जाता है। इनमें हिन्दू, ईसाई, इस्लामी, ग्रीक, रोमन, जापानी, चीनी, नॉर्स एवं अन्य साहित्य समाविष्ट हैं। यद्यपि मैं यह विश्वास करना चाहता हूँ कि हिन्दू दर्शन सत्य है, मैं अन्य साहित्य एवं संस्कृतियों के विषय में सोचता हूं। सत्य एक होना चाहिए एवं इसके फलस्वरूप अन्य सभी काल्पनिक होने चाहिए।

रेखा कहाँ खीँची जानी चाहिए? हिन्दू दर्शन व्यापक एवं अटूट रूप से गहरा है। यह उन विवरणों को भी प्रकट करता है जो ब्रह्माण्ड के विषय में आधुनिक वैज्ञानिक निष्कर्षों से निकटता से मेल खाते हैं, जबकि अन्य काल्पनिक कथाएँ बचकानी लगती हैं।

क्या हम कह सकते हैं कि इन ग्रन्थों की निष्कपट सरलता ने जनता के मध्य एक काल्पनिक कथा धारणा का निर्माण किया है, जिसे लोगों ने समस्त संस्कृतियों के लिए सामान्यीकृत किया है एवं अन्ततः हमारे वैदिक दर्शन को निगल लिया है?

उत्तर: आपका प्रश्न अत्यन्त श्वेत एवं श्याम है। यह सत्य नहीं है कि गैर-वैदिक साहित्य में सब कुछ काल्पनिक है। उनमें कुछ सत्य भी है।

उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म के अनेक सिद्धान्त हैं जो योग सूत्र, भगवद्गीता, अद्वैत वेदान्त इत्यादि से मेल खाते हैं। आप यह नहीं कह सकते कि सम्पूर्ण बौद्ध धर्म काल्पनिक है। उदाहरण के लिए, बौद्ध धर्म कहता है कि सब कुछ अस्थायी है। यह भौतिक वस्तु के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त सत्य है। बौद्ध धर्म कहता है कि सर्वत्र दुःख है। यह भी अत्यन्त सत्य है एवं कृष्ण भी ऐसा कहते हैं।

अतएव आपको साहित्य के प्रत्येक भाग का अध्ययन करना होगा एवं उसके उपरान्त सत्य और काल्पनिक के मध्य भेद करना होगा।

प्रश्न: सनातन धर्म में गोत्र का क्या महत्व है?

उत्तरः वैदिक अनुष्ठानों में, विशेषकर विवाह में, गोत्र का अत्यन्त महत्व था। दैनिक सन्ध्यावन्दन जैसे प्रत्येक अनुष्ठान के लिए व्यक्ति को वर्तमान दिन, समय एवं स्थान के साथ अपने गोत्र का उच्चारण करना होता है। किसी भी यज्ञ से पूर्व सङ्कल्प करते समय गोत्र की भी आवश्यकता होती है। समान गोत्र के पुरुष एवं सत्री का विवाह वर्जित है। गोत्र ने व्यक्ति को एक अत्यन्त स्पष्ट पहचान दी है।

*

प्रश्न: “क्लिं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजन वल्लभाय स्वाहा” मन्त्र श्रीमद्भागवतम् एवं ब्रह्म संहिता दोनों में वर्णित है। क्या यह किसी अन्य ग्रन्थ में भी है? साथ ही, क्या आप कृपया इस मन्त्र के विभिन्न उद्देश्यों की व्याख्या कर सकते हैं? कुछ अधिकारियों का दावा है कि यह मन्त्र नकारात्मक भावनाओं को दूर करता है।

उत्तर: यह मन्त्र क्रम-दीपिका एवं गोपाल-तापनी उपनिषद् में भी है। मन्त्र का मुख्य उद्देश्य कृष्ण-प्रेम प्राप्त करना है । परन्तु एक कल्प-वृक्ष के पेड़ की तरह होने के कारण, कोई अपनी किसी भी इच्छापूर्ति हेतु इसका जप कर सकता है।

प्रश्न: क्या परीक्षित महाराज की तक्षक द्वारा मृत्यु के पश्चात् उनकी आध्यात्मिक पहचान के विषय में कोई शास्त्र-प्रमाण है?

उत्तर: मैंने इस विषय कुछ पढ़ा नहीं है। परन्तु मैं कहूँगा कि चूँकि पाण्डव कृष्ण के नित्य पार्षद हैं एवं परीक्षित उनके पोते हैं जिन्होंने कृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन किए थे, वे कृष्ण के साथ पाण्डवों की नित्य लीला में भाग लेंगे।

प्रश्न: इस कथन का मूल स्रोत क्या है कि अनङ्ग मञ्जरी बलराम की स्वरूपशक्ति विस्तार हैं? यदि मैं गलत नहीं हूँ, तो यह मूल रूप से रामाई गोसाई द्वारा अनङ्ग-मञ्जरी-सम्पुटिका में है, परन्तु मुझे नहीं लगता कि यह जानकारी किसी गोस्वामी साहित्य में है।

उत्तर: आपने जो ऊपर उल्लेख किया है उसके अलावा मुझे कोई अन्य स्रोत ज्ञात नहीं है।

Notify me of new articles

Comments are closed.

© 2017 JIVA.ORG. All rights reserved.