प्रश्न: क्या आप कृपया एकादशी का अर्थ बता सकते हैं ?
उत्तरः इसका अर्थ है चन्द्र पखवाड़े का ग्यारहवाँ दिवस। मन इन्द्रियों का स्वामी है, और यह ग्यारहवाँ इन्द्रिय है। इस दिन व्रत रखने और कृष्ण का स्मरण करने से मन पर नियन्त्रण होता है। यह कृष्ण का दिन है, जो अधिष्ठाताता देव हैं। वैष्णव अपने मन और इंद्रियों को कृष्ण के स्मरण में लगाते हैं। उपवास या अल्पाहार से मन सतर्क होता है और इस प्रकार कृष्ण पर ध्यान करने के लिए अनुकूल होता है।
प्रश्न: मशरूम और प्याज जैसे अन्य पदार्थों से परहेज करने के लिए क्या निर्धारित किया गया है। उनके प्रभाव क्या हैं? क्या केवल इन दोनों का ही सेवन वर्जित है ?
उत्तर: कोई भी तामसिक और राजसिक पदार्थ जैसे लहसुन, शराब, सिगरेट वर्जित है क्योंकि इनका मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न: पाप पुरुष के विषय में मेरा एक प्रश्न है: कहा जाता है कि एकादशी के दिन पाप पुरुष अनाज में प्रवेश करता है, फिर भी शास्त्र यह भी कहते हैं कि 8 वर्ष से कम आयु के बच्चों और 80 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों को अनाज के उपवास से छूट दी जाती है । तो अवैष्णवों की क्या बात करें ? क्या तब उनके दानों में पापा पुरुष व्याप्त नहीं होते ? हमें इस पाप पुरुष को कैसे समझना चाहिए?
उत्तर: पाप का अर्थ है अनुचित कार्य, जो स्वयं को और समाज को हानि पहुँचाए अर्थात जो नैतिक असन्तुलन पैदा करे। कर्म मन की स्थिति पर निर्भर करते हैं। मन सबसे अधिक भोजन से प्रभावित होता है। चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता देव होने के साथ-साथ वनस्पतियों का राजा भी है। यह समझा जाता है कि भोजन की गुणवत्ता समय के साथ बदलती है। आयुर्वेद इस विषय में अत्यन्त स्पष्ट है। समय की गणना ग्रहों के गमन से की जाती है। एकादशी के दिन अनाज मन के लिए स्वास्थ्यवर्धक नहीं होता है, इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए। यह तथ्य एक सामान्य व्यक्ति के लिए पाप पुरुष की कहानी के रूप में बताया गया है। बच्चे या बूढ़े के विषय में भी पाप पुरुष है परन्तु सम्भवतः अनाज न खाने का परिणाम खाने से भी बुरा होगा, इसलिए बुरे प्रभावों में से कम से कम चुनें।
प्रश्न: मैं चातुर्मास्य का पालन करना चाहूंगा। क्या आप मुझे कुछ परामर्श दे सकते हैं कि अगले चार महीनों में क्या खाएँ और क्या करें ?
उत्तरः चातुर्मास्य व्रत (चातुर्मास्य की अवधि में व्रत) मुख्य रूप से स्वास्थ्य कारणों से होता है। बीमारी से बचने के लिए एक निश्चित आहार का पालन करना होता है। यह वह समय है जब उत्तर भारत में वर्षा होती है। इसलिए पहले मास में दूध और दूसरे मास में दही का सेवन वर्जित था। परन्तु इन सिद्धांतों का पश्चिम में या भारत में भी अधिक महत्व नहीं है क्योंकि अभी लोग सुपरमार्केट में सब कुछ खरीद रहे हैं । अभी हम सीधे प्रकृति से ताजा भोजन नहीं खा रहे हैं जो मौसम से प्रभावित होता है। यहां तक कि बाजार में मिलने वाला दूध भी प्रोसेस्ड होता है। साथ ही, मौसम भी बहुत परिवर्तित हो गया है।
परन्तु सितम्बर/अक्टूबर के महीने में जब शरद ऋतु समाप्त हो जाती है और सर्दी शुरू हो जाती है, तो अल्पाहार करना बेहतर होता है। अच्छा यह है कि कुछ दिनों तक उपवास रखा जाए और केवल फल, जूस और सूप का सेवन किया जाए। मैं ऐसा तब करूंगा जब मैं भारत लौटूंगा । विचार यह है कि मौसम के परिवर्तन के समय शरीर में रोग लगने की सम्भावना अधिक होती है। तो उस समय यदि हम अल्पाहार करते हैं तो हम किसी भी बीमारी के आक्रमण का प्रतिकार कर सकते हैं। जिस प्रकार हम सूर्यास्त और भोर में पूजा करते हैं जो कि परिवर्तन का समय भी है, उसी मौसम में परिवर्तन के समय उपवास या अल्पाहार किया जाता है । यह चातुर्मास्य का सिद्धान्त है। अब आप अपना स्वयं की कार्यक्रम तैयार कर सकते हैं। अच्छा स्वास्थ्य इस प्रकार आध्यात्मिकता के पालन में सहायक है । इसी दृष्टि से ये सिद्धान्त अप्रत्यक्ष रूप से आध्यात्मिकता से सम्बन्धित हैं । अन्यथा, इन आहार सिद्धान्तों के में कुछ भी स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक नहीं है।