जीवन हँसने एवं सुखी रहने हेतु होता है । यह केवल कृष्ण को परम सुहृद स्वीकार करने पर ही सम्भव है । उन्हें हमसे कोई अपेक्षा अथवा माँग नहीं है क्योंकि वे स्वयं में पूर्ण हैं । अतएव वे निष्काम भाव से प्रेम कर सकते हैं । हम उनसे सीख सकते हैं एवं उसी प्रकार कार्य कर सकते हैं ।