आप बुद्धिमान हो सकते हैं, परन्तु जब एक संस्कार सक्रिय हो जाता है तब आप अपनी बुद्धि खो देते हैं एवं संस्कार की भावना आपको पूरी तरह से अभिभूत कर देती है । तब आप एक छोटे बालक की तरह व्यवहार करते हैं। परन्तु अधिकांश व्यक्तियों को इसका अनुभव नहीं होता है, अतएव वे उस व्यक्ति को दोष देते हैं जिसने उनके संस्कार को सक्रिय किया । वे यह सोचते हैं कि संस्कार को सक्रिय करने वाले में ही समस्या है।